एक मुद्दत से मेरी माँ नहीं सोई ताबिज़,
मैंने इक बार कहा था, मुझे डर लगता है।
ताबिज़ भोपाली की यह लाइनें माँ और संतान के रिश्ते को बखूबी बयाँ करती हैं। माँ से जुदा होकर बच्चे का तो सुकून उड़ता है, अलबत्ता माँ की तो कायनात ही उजड़ जाती है। आपको ऐसी ही एक घटना से रू-ब-रू कराते हैं। हां, फोटो जरूर आपको दो देखनी पड़ेंगी। एक तो आप देख चुके हैं एक नीचे है। पेश है जिंदगी की धूप-छांव…
चंद रोज पहले की बात है। एक महिला कानपुर शहर के यशोदानगर स्थित बजरंग चौराहे पर भरी दोपहर बेहाल पड़ी थी। उस पर लोगों का ध्यान जाता तब तक दोपहर ढलने लगी थी। दोनों आँखें गवांए बैठी वह उस महिला के चारों ओर मजमा जुटने लगा। महिला मेरा बच्चा, मेरा बच्चा-सा कुछ बुदबुदा रही थी। वहां से गुजरा तो लोगों ने कहा, पंडतजी! पंडतजी! देखिए इस औरत की मदद कीजिए।
थाने में मुझसे कहा गया तो मैंने अपनी ओर से महिला की बात लिखकर दे दी की मुझे जैसा महिला ने बताया उसके अनुसार सविता को पति पीटता है और आए दिन बच्चा छीनकर भगा देता है। पुलिस भी उसे घर पहुंचा-पहुंचाकर आजिज आ चुकी है। पर इससे सविता को क्या? वह तो रोए जा रही थी, मेरा बच्चा, मेरा बच्चा। पुलिस का कहना यह कि आप महिला की तरफ से मुकदमा लिखो। मैं अड़ा था कि किसी अंधी महिला की तरफ से मैं कैसे लिखूं? इसी चक्कर में पति पर तो कार्रवाई नहीं हो पाई।
तमाम पुलिसकर्मियों ने तो हाल पूछा। आने की वजह पूछी और सरक लिए। टका-सा मुँह लिए खड़े रह गए, मैं और सविता। काफी हिम्मत के बाद मैंने अखबार का एक रोल बनाया महिला को एक-तरफ पकड़ाया और दूसरी तरफ से खुद थामा। एक होमगार्ड, माता बदल जरूर थाने से साथ हो लिए। जिस जगह का महिला ने जिक्र किया था, वहां पहुंचे।
उसके बाद लोगों से दरियाफ्त (पूछताछ) करने पर पता चला की यशोदानगर के आगे सैनिक चौराहा और उसके आगे ब्रह्मदेव चौराहा उसके आगे…। खैर जब हम पूछते-पूछते महिला के घर पहुंच ही गए तो कार्तिकेय बाबू तोतली जुबान में मम्मी-मम्मी कहते हुए सविता से लिपट गए। माँ के कलेज की ठंडक तो उसे देखकर ही महसूस हो सकती है। बच्चे के साथ महिला की फोटो देखिए और जब सड़क पर बेहाल थी तब की फोटो देखिए। अंतर साफ नजर आएगा।
अब एक कोशिश है कि किसी तरह से महिला के लिए विकलांग पेंशन और अन्त्योदय राशनकार्ड बनवा सकूँ। जिससे बाकी की जिंदगी में उसे ऐसे दिन न देखने पड़ें।
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